दिल्ली में क्यों घुट रहा लोगों का दम? ग्लोबल वॉर्मिंग का कनेक्शन समझ लीजिए

नई दिल्ली: बीते करीब 8 दिन से दिल्ली-एनसीआर के लोग साफ हवा के लिए तरस रहे हैं। एक्सपर्ट के अनुसार खराब हवा का संबंध ग्लोबल वॉर्मिंग से है। क्लाइमेट चेंज की वजह से एक तरफ जहां सर्दियों की बारिश दिल्ली-एनसीआर से गायब है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर

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नई दिल्ली: बीते करीब 8 दिन से दिल्ली-एनसीआर के लोग साफ हवा के लिए तरस रहे हैं। एक्सपर्ट के अनुसार खराब हवा का संबंध ग्लोबल वॉर्मिंग से है। क्लाइमेट चेंज की वजह से एक तरफ जहां सर्दियों की बारिश दिल्ली-एनसीआर से गायब है, वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर आने वाले वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की तीव्रता भी इसकी वजह से कम हो रही है। अभी आगे तापमान कम होने के साथ इस तरह के प्रदूषण का सामना लोगों को और भी करना पड़ सकता है।

पराली के धुएं की भी भूमिका

एक्सपर्ट के अनुसार इस बार दिवाली और उसके बाद भी कुछ दिन मौसम ने लोगों का साथ दिया। हवाओं की गति अच्छी रहने की वजह से दिवाली कम प्रदूषित रही। आमतौर पर राजधानी में सबसे अधिक एक्यूआई दिवाली के बाद ही दर्ज होता है। इसमें पराली के धुएं की भी भूमिका होती है। दिवाली के बाद मौसम बदला।

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दिल्ली समेत उत्तर पश्चिमी भारत में स्मॉग की शुरुआत जल्दी हो गई। लगातार पूर्वी हवाओं के आने से राजधानी में नमी बढ़ी। कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के गुजरने के बाद पहाड़ों की ठंडी हवाओं ने दिल्ली का तापमान कम किया। नमी बढ़ते और तापमान में कमी आते ही 17 नवंबर की शाम से दिल्ली-एनसीआर में कोहरा बनने लगा। हवाएं सुस्त हो गईं।

क्लाइमेट चेंज से बदला पैटर्न

आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेयरिक साइंस के प्रफेसर डॉ. सागनिक डे ने बताया कि दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में मौसम बदल रहा है। इसकी वजह से यहां प्रदूषण का पैटर्न भी बदला है। क्लाइमेट चेंज मौसम के साथ मिलकर प्रदूषण के स्तर को कई गुणा बढ़ा रहा है। क्लाइमेट चेंज की वजह से सर्दियों की बारिश नहीं हो रही है। वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की तीव्रता भी कम हो रही है।
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क्लाइमेट ट्रेंड्स की डायरेक्टर आरती खोसला ने बताया कि लगातार चार दिनों तक दिल्ली में एक्यूआई 450 के आसपास बना रहा। प्रदूषण की कोई एक वजह नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। ब्लैक कार्बन, ओजोन, पराली का जलाना आदि। हमें आकलन की जरूरत है कि हर सोर्स प्रदूषण पर कितना गहरा असर डाल रहा है।

पूर्वी हवाओं की वजह से जल्दी कोहरा

स्काईमेट के वाइस प्रेजिडेंट महेश पलावत के अनुसार आमतौर पर उत्तरी मैदानी इलाकों में कोहरा नवंबर के अंत में या दिसंबर की शुरुआत में आता है। लेकिन इस बार यह पूर्वी हवाओं की वजह से जल्दी आ गया। इस कोहरे में प्रदूषण के कण मिलने लगे और यह स्मॉग में तबदील हो गया। कमजोर हवाओं ने प्रदूषकों को बहने से रोका और लंबे समय तक स्मॉग बना रहा।

आईआईटी कानपुर के एस. एन. त्रिपाठी के अनुसार कोहरे में मिलकर पीएम 10 और पीएम 2.5 अधिक घातक हो रहा है। ठंड बढ़ने के साथ हवा में नमी बढ़ती है और यह नमी पीएम 10 और पीएम 2.5 को भारी कर देती है। जब कोहरा छंट जाता है तो यह ड्राप्लेट पीएम 10 और पीएम 2.5 को छोड़कर वापस भाप बन जाती है। इस दौरान पीएम 10 और पीएम 2.5 ऑक्सिडाइज्ड हो जाते हैं और इससे अगले दिन कोहरा जल्दी बनता है।

तो स्मॉग की लेयर होगी मोटी

आईआईटी भुवनेश्वर के असिस्टेंट प्रफेसर डॉ. वी. विनोज ने बताया कि कोहरे के छाने से अधिकतम और न्यूनतम तापमान में कमी आती है। तापमान कम होने से प्रदूषक ऊपर नहीं जा पाते। आने वाले दिनों में दिल्ली में नॉर्थ-वेस्टर्न हवाएं आएंगी। इसकी वजह से न्यूनतम तापमान में और अधिक गिरावट होगी और प्रदूषक एक ही जगह जम सकते हैं। न्यूनतम तापमान में जितनी गिरावट होगी स्मॉग की परत उतनी मोटी होगी। इसकी वजह से सूरज की किरणे धरती तक मुश्किल से पहुंचेंगी और प्रदूषण में इजाफा होगा।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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